शनिवार, 9 मई 2020

रिश्ता ?

तुमसे ये रिश्ता क्या है
     यूँ तो बस कभी यूँ ही मिले थे हम
 फिर भी ये रिश्ता क्या है ,
 मैंने कहा , चलोगे मेरे साथ
   तुम चल ही तो पड़े थे और
फिर जब कभी हम बात करते थे दूरभाष पर ही
 तो यकायक फूल से खिल उठते थे ,
    तो ये रिश्ता क्या है
और तुम्हारे बेबूझ नाराजी के बावजूद
   अरसे बाद जब मिले तो क्या खूब मिले
तो फिर ये रिश्ता क्या है ।
कितना तो पूछा हर बार तुम हँस के यही बोले
 मैं ऐसी ही हूँ बेबूझ ।
 और अब जब तुम अपनी दुनिया में खो गयीहो
     तो  मेरे अंतरतम से अचानक ये रिसता कया है

गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

जीवन

जीवन अज्ञात
   भविष्य सम्भावना से पूर्ण
 क्या है ज्ञात ?
कब हो क्या घटित
कौन जानता ,
किसके हिस्से में होगा प्रकाश
कँहा , कब अंधकार
कोई न जानता ,
ये रहस्य ?
तब जीने की कला क्या है ?
बेफिक्र होकर
इस अज्ञात रहस्य से
हमेशा जिओ आज में
परिपूर्ण ।
कल के अज्ञात को रहने दो
अज्ञात ।

रविवार, 21 जनवरी 2018

तुम

उस दिन हम  जब अचानक आमने सामने थे ,
तुम्हारी खामोश निगाहों में
एक खामोश शिकवा था न मेरे लिए ?
कितनी खूबी से तुमने उसे छिपा लिया
अपनी पलकों में ।
और यूँ मिली मुझसे
जैसे कभी कोई शिकवा न था ।
शिकवा न था कोई
तो फिर वो दूरियां क्यों थी ?
मिलते हैं फिर कभी ,
ये कह के तुम चल तो दीं ।
मगर कब तक ,
और फिर एक दिन
 जब सच में तुम को जाना था
तब आयीं थी तुम फिर
मेरे पास कुछ पलों के लिये ।
और मैं आज भी उन पलों के साथ जी रहा हूँ,
 जैसे मुझे पूरी पृथ्वी का साम्राज्य मिल गया हो ।

रविवार, 28 मई 2017

तो आखिर - ये खुदा क्या है ?

जबकि तुझ बिन नही कोई मौंजू
फिर ये हंगामा ए जुदा क्या है....
तू है फेसबुक पे और है भी नहीं
तो फिर ये आखिर हुआ  क्या है ?
माना तेरा जन्म दिन है कल
पर आज ही मुझे ये हुआ क्या है ?
पड़ा हूँ बिस्तर पे औ आ रहे हैं चक्कर
या इलाही ये माजरा क्या है ?
लोग जीते है जी जी के मरते है
मैं मर मर के जी रहा हूँ माजरा क्या है ?
मैं हूँ - मैं ही हूँ - मैं - मैं ही हूँ
तो आखिर - ये खुदा क्या है ?

गुरुवार, 18 मई 2017

ओहो- तो ये तुम हो ?वाक़ई, हद है,
मैं तो सच मुच तेरे को भूल गया ?
सब बुरे मुझको याद रहे - अरे ,
जो भला था उसी को भूल गया ?
कितना वक्त हमसफ़र रह कर,
कमबख्त - हमनशीं को भूल गया?
तेरी उस हँसी को तो भूल गया
अपने उस ज़ख्म को भी भूल गया ?
दोस्तों - अब तो रास्ता दे दो,
अब तो मैं उस गली को भूल गया ?
कितने प्यार से बोली थी वो ,
क्या हुआ ? महजबीं को भूल गया ?

रविवार, 5 फ़रवरी 2017

उसके साए से सट के चलते हैं .
हम भला , टालने से टलते हैं ?
मैं कन्हा उस तरह से रंग बदलता हूँ
-- जिस तरह से वो रंग बदलते हैं .
तुम ही हो जान हर महफ़िल की
हम कन्हा घर से अब निकलते हैं .
तुम बनो रंग - तुम बनो सुगंध
--- हम तो आंसुओ में ढलते हैं .
है ये कितना दूर का सफ़र यारों
लडखडाते पांव कंहा संभलते हैं .
हो रहा हूँ जिस तरह मैं बर्बाद
देखने वाले तो इससे भी जलते हैं
या रब मुझे चैन क्यों नहीं पड़ता
एक ही शख्स था इस जहाँ में क्या ?
ताकता रहता हूँ उस मकां की तरफ
कोई नहीं रहता है उस मकाँ में क्या ?
मेरी हर बात बेअसर ही रही
कोई नुक्स है मेरे बयाँ में क्या ?
बोलते नहीं क्यों तुम मुझसे
जख्म ही दोगे उपहार में क्या ?
क्या कहूँ - क्या लिखूँ - क्या करूँ
कोई हरकत नहीं आती तेरी जुबाँ पे क्या?